एक नजर सबसे हॉट सीट चुरू लोकसभा पर
वैसे तो गर्मी के दिनों में पूरा राजस्थान खूब तपता है, लेकिन शेखावटी अंचल के चुरू में तो तापमान सर्दियों में भी बढ़ा ही होता है. यही स्थिति यहां की राजनीति में भी देखने को मिलती है. खासतौर पर चूरू लोकसभा क्षेत्र, यहां मुद्दों की कोई विशेष अहमियत नहीं होती. बल्कि यहां के लोग नेता की जाति और पार्टी को तरजीह देते हैं. यही वजह है कि साल 1999 से ही यह सीट बीजेपी का अभेद्य किला है. पूर्व में इस सीट से कांग्रेस और जनता दल के अलावा जनता पार्टी भी अपनी हाजिरी दर्ज करा चुकी है.
2014 से इस सीट से बीजेपी के राहुल कस्वां सांसद हैं. हालांकि वो अब कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. उनसे ठीक पहले तीन बार उनके पिता रामसिंह कस्वां यहां से जीत चुके हैं. इस सीट के लिए रेलवे, रोजगार और फ्लोराइड युक्त पानी के अलावा उद्योगों की स्थापना मुख्य मुद्दा है. हर चुनाव में इन मुद्दों पर चर्चा भी होती है, लेकिन वोट तो जाति और पार्टी के नाम पर ही पड़ते हैं.
चुरू लोकसभा में आठ विधानसभा
निर्वाचन आयोग के रिकार्ड के मुताबिक इस सीट का गठन 1977 में हनुमान गढ़ की नोहर, भादरा सीट के अलावा चुरू जिले की सादुलपुर, तारानगर, सरदार शहर, चुरू, रतनगढ़ और सुजानगढ़ को मिलाकर हुआ था. उसके बाद यहां से केवल एक बार ही गैर जाट उम्मीदवार जीत पाया है.
इतिहास-भूगोल
चूरू को राजस्थान में थार मरुस्थल का द्वार कहा जाता है. चूरू की स्थापना साल 1620 ई में निर्बान राजपूतों ने की. आजादी से पहले यह भूभाग बीकानेर रियासत का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन 1948 में इसे बीकानेर से अलगकर जिला बनाया गया. यह शहर संगरूर से अंकोला को जोड़ने वाले एनएच 52 पर स्थित है. यहां रतनगढ़ का ऐतिहासिक किला है. बीकानेर के राजा रतन सिंह ने 1820 ई. इसका निर्माण कराया. यहां गर्मियों में रेत के तूफान आते हैं. इस शहर में कन्हैया लाल बंगला की हवेली और सुराना हवेली आदि जैसी कई खूबसूरत इमारते हैं. पास में ही नाथ साधुओं का अखाड़ा है. इसके अलावा काले हिरण के लिए प्रसिद्ध ताल छापर अभयारण्य और सुंदर चित्रकारी के लिए कोठारी हवेली की भी काफी ख्याति है. चुरू में हनुमान जी का प्रसिद्ध स्थान सालासर धाम भी है. जयपुर-बीकानेर मार्ग स्थित इस मंदिर में देश विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक यहां पहुंचते हैं. साल में यहां दो बड़े मेले आयोजित होते हैं. श्रद्धालुओं के लिए यह मंदिर पूरे साल खुला रहता है.
पानी में फ्लोराइड बड़ा मुद्दा
इस समय चुरू सीट से बीजेपी के राहुल कस्वां सांसद हैं. निर्वाचन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक राहुल कस्वां से ठीक पहले तीन बार उनके पिता रामसिंह कस्वां यहां से चुनाव जीतते रहे हैं. इस लोकसभा क्षेत्र में सबसे बड़ मुद्दा रेलवे, रोजगार और फ्लोराइड युक्त पानी है. यहां औद्योगिकरण की भी मांग लंबे समय से हो रही है.
काला हिरण के लिए प्रसिद्ध है क्षेत्र
इस शहर में कन्हैया लाल बंगला की हवेली और सुराना हवेली आदि जैसी कई अन्य खूबसूरत इमारतें भी हैं. पास में ही नाथ साधुओं का अखाड़ा है. इसके अलावा काले हिरण के लिए प्रसिद्ध ताल छापर अभयारण्य और सुंदर चित्रकारी के लिए कोठारी हवेली की भी काफी ख्याति है. चुरू में हनुमान जी का प्रसिद्ध स्थान सालासर धाम भी है. जयपुर-बीकानेर मार्ग स्थित इस मंदिर में देश विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक यहां पहुंचते हैं. साल में यहां दो बेड़े मेले आयोजित होते हैं. श्रद्धालुओं के लिए यह मंदिर पूरे साल खुला रहता है.
सामाजिक ताना-बाना
चुरू लोकसभा क्षेत्र में करीब 20 लाख से अधिक वोटर हैं. इनमें पांच लाख जाट वोटर हैं. वहीं ओबीसी मतदाताओं की संख्या करीब पौने चार लाख है. इसी प्रकार दो लाख दस हजार के आसपास मुस्लिम मतदाता भी हैं. इस लोकसभा क्षेत्र में जिले की सभी 7 विधानसभा सीटें तो हैं ही, एक हनुमानगढ़ जिले की सीट भी है. यहां के करीब 1,519,301 वोटर गांवों में रहते हैं. वहीं करीब 490,357 वोटर शहर और कस्बों में रहते हैं.
राजनीतिक खांचा
लोकसभा सीट बनने के बाद 1977 में पहली बार और 1980 में दूसरी बार जनता पार्टी के टिकट पर यहां से दौलतराम सारन सांसद चुने गए थे. 1984 के चुनाव में यह सीट कांग्रेस के मोहर सिंह राठौड़ ने छीन ली और एक साल बाद हुए चौथे चुनाव में कांग्रेस के ही नरेंद्र बुढानियां सांसद चुने गए थे. 1989 के चुनाव में एक बार फिर दौलतराम सल ने जनता दल के टिकट पर चुनाव जीत कर कब्जा जमाया था.
राहुल कस्वां को विरासत में मिली सीट
हालांकि बीजेपी के रामसिंह कास्वां ने 1991 में पराजित कर दिया. इसके बाद 196 में फिर से कांग्रेस के नरेंद्र बुढानियां चुने गए और 1998 में भी अपनी जीत कायम रखी. हालांकि 1999 के चुनाव में राम सिंह कस्वां फिर बीजेपी के टिकट पर जीते और तीन बार सांसद रहने के बाद यह सीट अपने बेटे राहुल कास्वां को दे दी.