नागौर में रिछपाल मिर्धा राजी हुए तो बाड़मेर में हेमाराम चौधरी रुठ गए। मंत्री रहते हुए काम नहीं करवाने का अफसोस।
नोहर तेज़
राजस्थान में कांग्रेस की जाट राजनीति में तेजी से उतार चढ़ाव हो रहा है। 15 अक्टूबर को नागौर के दिग्गज जाट नेता और चार बार विधायक रहे दिपल मिर्धा ने कहा कि यदि उनकी बेटी (भतीजी) ज्योति मिर्धा चुनाव लड़ती है तो वे प्रचार करने जाएंगे। उनके लिए पार्टी वार्टी कोई पाबंदी नहीं है। मिर्धा के इस बयान पर कांग्रेस के बड़े नेताओं ने समझाइश की तो 16 अक्टूबर को मिर्धा ने सफाई देते हुए कहा कि उनका बयान कांग्रेस के खिलाफ नहीं बल्कि आरएलपी के हनुमान बेनीवाल के खिलाफ है। चूंकि चुनाव में बेनीवाल को हरवाना है, इसलिए मैंने भाजपा की ज्योति मिर्धा का प्रचार करने की बात कही थी। मैं कांग्रेसी हंू और कांग्रेस का ही रहूंगा। इधर मिर्धा की सफाई आई तो उधर 16 अक्टूबर को ही बाड़मेर से वन मंत्री हेमाराम चौधरी की नाराजगी सामने आ गई। चौधरी ने कहा कि मैं मंत्री रहते हुए काम नहीं करवा सका, इसका मुझे दुख है। अब मैं चुनाव नहीं लडूंगा। चौधरी अभी गुढ़ामलानी से कांग्रेस के विधायक हैं। चौधरी उन 18 विधायकों में शामिल हैं, जो अगस्त 2020 में सचिन पायलट के नेतृत्व में दिल्ली गए थे। चौधरी की नाराजगी से भी कांग्रेस में चिंता का माहौल है। इसलिए उन्हें मनाने की कोशिशें हो रही है। राजनीति में चौधरी की छवि साफ-सुथरी है और वे स्पष्टवादिता के कारण हमेशा चर्चा में रहे हैं। यदि चौधरी चुनाव नहीं लड़ते हैं तो इससे बाड़मेर क्षेत्र में कांग्रेस को नुकसान होगा। उल्लेखनीय है कि इससे पहले पूर्व मंत्री और पंजाब के प्रभारी हरीश चौधरी भी अपनी सरकार के कामकाज को लेकर नाराजगी जता चुके हैं। सूत्रों की मानें तो हरीश चौधरी अभी भी संतुष्ट नहीं है। कांग्रेस की जाट राजनीति में यह तब हो रहा है, जब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद पर गोविंद सिंह डोटासरा है। राजस्थान की राजनीति में जाट समुदाय के दबदबे को देखते हुए ही डोटासरा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन प्रतीत होता है कि डोटासरा बड़े जाट नेताओं के बीच तालमेल बैठाने में विफल रहे।